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Interview with Alexshendra, Author of “Arambh ki Gyarah Kahaniya"

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on Nov 27, 2023
Interview with  Alexshendra, Author of “Arambh ki Gyarah Kahaniya" | Frontlist

फ्रंटलिस्ट: कहानियों के इस विशेष संग्रह को लिखने के लिए आपको किस बात ने प्रेरित किया? क्या ऐसे कोई व्यक्तिगत अनुभव या विषय थे जो आपकी रचनात्मक प्रक्रिया को संचालित करते थे?

अलेक्शेन्द्रा: मेरे पिताजी श्री बीबी बक्शी साहब उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं और  उन्होंने अपनी सेवाएँ उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में बतौर पुलिस कप्तान के रूप में दी है। हम सपरिवार पिताजी के साथ ही रहे, जिस कारणवश मुझे हिंदी भाषा के हृदय स्तोत्र स्थान पर रहने का अवसर मिला और मैंने इन स्थानों में जीवन के कई आयाम बहुत नज़दीकी से अनुभव किए और यही अनुभव आगे चल के लेखन की रचनात्मक प्रकृति में संप्रेषित हो गए। मेरी माताजी श्रीमती चंचल रानी बक्शी जी हिंदी भाषा की सशक्त ज्ञाता रहीं हैं। उन्होंने मुझे हिंदी भाषा व मातृशक्ति के संबंधों के बारे में दीक्षा दी जिसने मेरी लेखन की रचनात्मक प्रकृति को आत्मिक स्तर से व्यवहारिक स्तर तक संचालित किया।

फ्रंटलिस्ट: आपकी किताब में कहानियां अलग-अलग शैलियों के साथ कही गई हैं। आपने विविध आख्यानों (नैरेटिव) को एक ही संग्रह में प्रस्तुत करने का निर्णय क्यों लिया?

अलेक्शेन्द्रा: मेरी विभिन्न कहानियों के विविध आख्यान मातृशक्ति में मेरे प्रज्ञान श्रद्धा कोष के गौमुख से उत्पन्न हुए हैं और सब कहानियों में पाठकों को एक आधारभूत आख्यान की ध्वनि मिले इसके लिए मैंने अधिक प्रयत्न किया और अलग-अलग कहानियों को एक ही संग्रह में प्रस्तुत करने का कठिन निर्णय लिया।

फ्रंटलिस्ट: कहानियों का संग्रह लिखना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है। "आरंभ की ग्यारह कहानियां" बनाने का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू क्या था और आपने इसे कैसे पार किया?

अलेक्शेन्द्रा: आरंभ की ग्यारह कहानियों का संग्रह लिखने का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू यह था कि किसी कहानी का हाथ दूसरी कहानी के हाथ से छूट न जाए और पाठकों का जो संबंध एक कहानी के साथ स्थापित हुआ है वही संबंध दूसरी कहानी के साथ भी आत्मिक और भावात्मक रूप से सशक्त होता चला जाए। इस प्रक्रिया में मेरी सबसे ज़्यादा सहायता मेरे उन अनुभवों ने की जो मैंने वर्षों से संजो के रखे थे।

फ्रंटलिस्ट: क्या आप अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में कुछ जानकारी साझा कर सकती हैं? क्या आपके पास कोई तकनीक है जो नई कहानी पर काम करते समय आपको रचनात्मक क्षेत्र में आने में मदद करती है?

अलेक्शेन्द्रा: कहानियां लिखी नहीं जाती उतरती है यह सत्य है। मेरी लेखन प्रक्रिया एक सीढ़ी की तरह है जो मानस के ब्रह्मांड में विचरण करती इन कहानियों को स्याही और कलम की रस्सी से कागज के पन्ने पर उतारने की कोशिश करती है। हर नई कहानी का हाथ पुरानी कहानी थाम लेती है और प्यार से, स्नेह से नई कहानी को रचनात्मक क्षेत्र की धरती रूपी पन्ने पर स्थापित कर देती है।

फ्रंटलिस्ट: क्या आप इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों को कोई खास संदेश देना चाहती हैं?

अलेक्शेन्द्रा: मैं इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों को एक ही संदेश देना चाहती हूँ कि साहित्य समाज का वह दर्पण है जिसमें मनुष्य अपना चेहरा स्पष्ट देख सकता है और लिखित साहित्य का माध्यम पन्ने पर उभरा हुआ एक ऐसा संसार है जिसके हर गली कूचे पर मानवीय अनुभवों के अमूल्य स्मारक स्थापित हैं, जो पाठक के मानस को आशीर्वाद प्रदान करते हैं इसलिए युवा पीढ़ी को लिखित साहित्य में रुचि बढ़ानी चाहिए।

फ्रंटलिस्ट: आज के तेज़ी से बदलते साहित्यिक परिदृश्य में, आप अपने काम को साहित्य की दुनिया में योगदान के रूप में कैसे देखती हैं?

अलेक्शेन्द्रा: आरंभ की ग्यारह कहानियां पुस्तक संग्रह की किसी एक कहानी से भी पाठक का आत्मिक संबंध ऐसे स्थापित हो जाए कि वह दूसरी कहानियों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित हो सके तो मैं इसे अपना सबसे बड़ा योगदान मानते हुए परमपिता परमेश्वर का कोटि-कोटि धन्यवाद कर पाउंगी क्योंकि आज के समय में साहित्य परिदृष्य धुएं के बादल के समान लोप होता जा रहा है।

फ्रंटलिस्ट: आप उन महत्वाकांक्षी लेखकों को क्या सलाह देंगी जो अपनी कहानी कहने में विविध विषयों और शैलियों की खोज करना चाहते हैं?

अलेक्शेन्द्रा: मेरा एक ही संदेश है उन सब लेखकों को जो विभिन्न शैलियों और विषयों की खोज करना चाहते हैं। “अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी, तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।” इस बात से मेरा अभिप्राय है कि शैलियां मनुष्य और प्रकृति के संबंध से बनी है और विषय दृश्य और मानस के संबंध से उत्पन्न होते हैं इसलिए लेखक को चाहिए कि वह अपनी अंतरात्मा के प्रति हमेशा सत्य और श्रद्धा से समर्पित रहे और अपने समाज के प्रति अत्यंत गंभीरता से दृष्टा बनाए रखे ताकि कोई भी कहानी और विषय लेखक से बच के न जा सके।

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